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गृह दशा दशा : गृह अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार शुभाशुभ परिणाम अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में देते हैं | अन्तर्दशा ही किसी परिणाम की प्रमुख कारक होती है जबकि महादशा, अन्तर्दशा के परिणाम को मदद कराती है |यदि महादशा किसी अशुभ गृह की हो तथा अन्तर्दशा का स्वामी निर्बल हो तो उस दशा में जातक को कष्ट होगा |
प्रत्यंतर दशा का फल एक सीमित क्षेत्र तक होता है | ये दशाएं गोचर में किसी स्थिति को मदद करने तथा किसी विशेष घटना का अन्तर्दशा के स्वामी के अनुसार परिणाम देती हैं | यदि महादशा का स्वामी शुभ गृह कमजोर और दुष्प्रभावी हो तो भी यह कम हानि तथा कष्ट देता है | यदि किसी जन्म कुंडली में महादशा का स्वामी शुभ तथा शक्तिशाली होतो व्यक्ति अपने जीवन में उन्नति करता है एवं जीवन सुखी होता है | जन्म कुंडली में भावेशों की स्थिति अनुसार जीवन में घटित होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं का संकेत देने वाले प्रमुख बिन्दुओं में दशा क्रम महत्वपूर्ण है |दशा क्रम में विंशोत्तरी दशा क्रम, अष्टोत्तरी दशा क्रम,योगिनी दशा क्रम, चर दशा क्रम, मांडू दशा क्रम प्रचलित हैं किन्तु घटनाओं के समय निर्धारण में विंशोत्तरी दशा क्रम का उपयोग ज्यादा होता है एवं प्रचलन में है |राशि चक्र में ३६० अंश एवं १२० अंश का एक त्रिकोण होता है | विंशोत्तरी दशा क्रम में त्रिकोण के १२० अंश को आधार मानते हुए मनुष्य की आयु काल १२० वर्ष का निश्चित किया गया है | एवं इसी आयु काल में भ्रमण पथ पर नवग्रहों के सम्पूर्ण भ्रमण काल को भी देखा उनकी समयावधि भी १२० वर्ष पाई गई | इस प्रकार महर्षि पाराशर ने मानव जीवन के १२० वर्ष को आधार मानते हुए २७ नक्षत्रों को ९ ग्रहों में बांटकर प्रत्येक गृह को ३-३ नक्षत्रों का स्वामी बनाकर एक दशा क्रम या दशा पद्दति तैयार की | इसी पद्दति को विंशोत्तरी पद्दति कहते हैं | भ्रमण पथ पर भ्रमण काल में सुर्य आदि ग्रहों की आवर्ती – पुनरावृत्ति अनुसार नव ग्रहों का दशा क्रम कृतिका नक्षत्र से प्रारम्भ मानकर दशा वर्ष निश्चित किये गए| जन्मकालीन चन्द्र की नक्षत्रात्मक स्थिति को ध्यान में रख कर ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा,प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा, और प्राण दशा ज्ञात करने की विधि तैयार की |
नीचे ग्रहों की महा दशाएं क्रम से वर्णित हैं , जिनका विचार विंशोत्तरी दशा हेतु किया जाता है |
सूर्य —– ६ वर्ष
चन्द्रमा —- १० वर्ष
मंगल —– ७ वर्ष
राहू —– १८ वर्ष
गुरु —– १६ वर्ष
शनि —– १९ वर्ष
बुध —– १७ वर्ष
केतु —– ७ वर्ष
शुक्र —– २० वर्ष
विंशोत्तरी महादशा प्रणाली के अंतर्गत किसी ग्रह की महादशा में सभी अन्य ग्रह अपने – अपने हिस्से की अन्तर्दशा भोगते हैं |इसी अंश दशा को अन्तर्दशा कहा जाता है | किसी ग्रह की अन्तर्दशा उसी दशा से प्रारंभ होती है, जिसकी की महा दशा चल रही होती है | बाकि शेष अन्य अन्तर्दशा उपरोक्त क्रम से आती हैं |
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