Sunday, 3 April 2016

क्यों नहीं करना चाहिए एक ही गौत्र में विवाह?

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ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र होकिंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न होतो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए।  विश्वामित्र,जमदग्निभारद्वाजगौतमअत्रिवशिष्ठकश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान गौत्र” कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज हैउसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने लगा।  ऋषियों की संख्या लाख-करोड़ होने के कारण गौत्रों की संख्या भी लाख-करोड़ मानी जाती हैपरंतु सामान्यत: आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गौत्र ऋषि माने जाते हैंजिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गौत्र बनाए गए। महाभारत” के शांतिपर्व (297/17-18) मेंमूल चार गौत्र बताए गए हैं- अंगिराकश्यपवशिष्ठ और भृगुजबकि जैन ग्रंथों में गौत्रों का उल्लेख है- कश्यपगौतमवत्स्यकुत्स,कौशिकमंडव्य और वशिष्ठ। इनमें हर एक के अलग-अलग भेद बताए गए हैं- जैसे कौशिक-कौशिक कात्यायनदर्भ कात्यायन,वल्कलिनपाक्षिणलोधाक्षलोहितायन (दिव्यावदन-331-12,14) विवाह निश्चित करते समय गौत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना जरूरी है। प्रवर भी प्राचीन ऋषियों के नाम है तथापि अंतर यह है कि गौत्र का संबंध रक्त से हैजबकि प्रवर से आध्यात्मिक संबंध है। प्रवर की गणना गौत्रों के अंतर्गत की जाने से जाति से संगौत्र बहिर्विवाहकी धारणा प्रवरों के लिए भी लागू होने लगी।
 ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र होकिंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न होतो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए। वर-वधू का एक वर्ष होतेहुए भी उनके भिन्ना-भिन्ना गौत्र और प्रवर होना आवश्यक है (मनुस्मृति- 3/5)। मत्स्यपुराण (4/2) में ब्राह्मण के साथ संगौत्रीय शतरूपा के विवाह पर आश्चर्य और खेद प्रकट किया गया है। गौतमधर्म सूत्र (4/2) में भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है। (असमान प्रवरैर्विगत) आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है- संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्” (समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए)।  असमान गौत्रीय के साथ विवाह न करने पर भूल पुरुष के ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने तथा चांडाल पुत्र-पुत्री के उत्पन्ना होने की बात कही गई। अपर्राक कहता है कि जान-बूझकर संगौत्रीय कन्या से विवाह करने वाला जातिच्युत हो जाता हैजबकि बोधायन का मत है कि यदि कोई व्यक्ति भूल से भी संगौत्रीय कन्या से विवाह करता हैतो उसे उस कन्या का मातृत्वत् पालन करना चाहिए (संगौत्रचेदमत्योपयच्छते मातृपयेनां विमृयात्)।  गौत्र जन्मना प्राप्त नहीं होताइसलिए विवाह के पश्चात कन्या का गौत्र बदल जाता है और उसके लिए उसके पति का गौत्र लागू हो जाता है।

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