Sunday, 3 April 2016

शाबर मंत्र साधना विधि

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शाबर मंत्र साधना विधि की क्या है ?भाग- 1
शीघ्र फल-दायक सिद्ध शाबर मन्त्र
साबर’ का प्रतीक अर्थ होता है ग्राम्यअपरिष्कृत । साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य-शाखा है । इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर प्रत्यक्ष-तया नहीं हैकिन्तु जिन सिद्धों ने इसका आविष्कार कियावे परम-शिव-भक्त अवश्य थे । गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ साबर-मन्त्र’ के जनक माने जाते हैं । अपने तप-प्रभाव से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं । अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं । सिद्ध’ और नाथ’ सम्प्रदायों ने परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर बोल-चाल की भाषा को मन्त्रो का दर्जा दिया गया ।
साबर’-मन्त्रों में आन’ और शाप’, ‘श्रद्धा’ और धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है । साधक याचक’ होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहता हैउसी से सब कुछ कराना चाहता है । आश्चर्य यह है कि उसकी यह आन’ भी काम करती है । आन’ का अर्थ है – सौगन्ध ।
शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की आन’ नहीं रहती । बाल-सुलभ सरलता का विश्वास साबर मन्त्रों का साधक मन्त्र के देवता के प्रति रखता है । जिस प्रकार अबोध बालक की अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य-प्रेम के कारण कोई ध्यान नहीं देते,वैसे ही बाल-सुलभ सरलता’ और विश्वास’ के आधार पर साबर’ मन्त्रों की साधना करना वाला सिद्धि प्राप्त कर लेता है ।
साबर’-मन्त्रों में संस्कृतप्राकृत और क्षेत्रीय – सभी भाषाओं का उपयोग मिलता है । किन्हीं-किन्हीं मन्त्रों में संस्कृत और मलयालयकन्नड़गुजरातीबंगला या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगातो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली और कल्पना भी मिल जायेगी ।
भारत के एक बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा हिन्दी’ है । अतः अधिकांश साबर’ – मन्त्र हिन्दी में ही मिलते हैं । इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान षडङ्ग’ - ऋषिछन्दवीजशक्तिकीलक और देवता - की योजना अलग से नहीं रहती,अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही निहित रहता है । इसलिए प्रत्येक साबर’ मन्त्र अपने आप में पूर्ण होता है । उपदेष्टाऋषि’ के रुप में गोरखनाथसुलेमान जैसे सिद्ध-पुरुष हैं । कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कइयों में केवल गुरु के नाम से ही काम चल जाता है ।
पल्लव’ (मन्त्र के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द) के स्थान में शब्द साँचा पिण्ड काचाफुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’ – वाक्य ही सामान्यतः रहता है । इस वाक्य का अर्थ है शब्द ही सत्य हैनष्ट नहीं होता । यह देह अनित्य हैबहुत कच्चा है । हे मन्त्र ! तुम ईश्वरी वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट हो)” इसी प्रकार के या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द इस मन्त्रों के पल्लव’ होते
साबर मंत्रो को जगाने की विधि
द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शिव का तप किया एक दिन भगवान् शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा  अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा जिसका रोज तप करते हो वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है  अर्जुन ने भगवान् शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप दिखाया !
अर्जुन भगवान् शिव के चरणों में गिर पड़े और पाशुपत अस्त्र के लिए प्रार्थना की  शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया उसी समय माँ पार्वती ने भी अपना असली स्वरुप दिखाया  जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया  माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ” हे किरातों  मैं प्रसन्न हूँ वर मांगो  ” इसपर शिकारीओं ने कहा ” हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके

माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान् शिव ने साबर मन्त्रों की रचना की  यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि नाथ पंथ में भगवान् शिव को ” आदिनाथ ” कहा जाता है और माता पार्वती को उदयनाथ ” कहा जाता है  भगवान् शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार किया और करोड़ो साबर मन्त्रों की रचना की  उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के माध्यम से इस विद्या का बहुत प्रचार हुआ  कहा जाता है कि योगी कानिफनाथ जी ने पांच करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की और वही चर्पटनाथ जी ने सोलह करोड़ मन्त्रों की रचना की मान्यता है कि योगी जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की  इन योगीयो के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धों ने साबर मन्त्रों की रचना की  यह साबर विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी इसलिए साबर मंत्र चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है  अतः यह कहना गलत ना होगा कि साबर मंत्र नाथ सिद्धों की देन है
साबर मन्त्रों के मुख्य पांच प्रकार है -
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१ . प्रबल साबर  इस प्रकार के साबर मन्त्र कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग होते है इन में प्रत्यक्षीकरण नहीं होता  केवल जिस मंशा से जप किया जाता है वह इच्छा पूर्ण हो जाती है  इन्हें कार्य सिद्धि मंत्र कहना गलत ना होगा  यह मंत्र सभी प्रकार के कर्मों को करने में सक्षम है  अतः इस प्रकार के मन्त्रों में व्यक्ति देवता से कार्यसिद्धि के लिए प्रार्थना करता है साधक एक याचक के रूप में देवता से याचना करता है
२. बर्भर साबर  इस प्रकार के साबर मन्त्र भी सभी प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम है पर यह प्रबल साबर मन्त्रों से अधिक तीव्र माने जाते है  बर्भर साबर मन्त्रों में साधक देवता से याचना नहीं करता अपितु देवता से सौदा करता है  इस प्रकार के मन्त्रों में देवता को गालीश्रापदुहाई और धमकी आदि देकर काम करवाया जाता है  देवता को भेंट दी जाती है और कहा जाता है कि मेरा अमुक कार्य होने पर मैं आपको इसी प्रकार भेंट दूंगा ! यह मंत्र बहुत ज्यादा उग्र होते है
३. बराटी साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्रों में देवता को भेंट आदि ना देकर उनसे बलपूर्वक काम करवाया जाता है  यह मंत्र स्वयं सिद्ध होते है पर गुरुमुखी होने पर ही अपना पूर्ण प्रभाव दिखाते है ! इस प्रकार के मंत्रों में साधक याचक नहीं होता और ना ही सौदा करता है  वह देवता को आदेश देता है कि मेरा अमुक कार्य तुरंत करो  यह मन्त्र मुख्य रूप से योगी कानिफनाथ जी के कापालिक मत में अधिक प्रचलित है  कुछ प्रयोगों में योगी अपने जुते पर मंत्र पढ़कर उस जुते को जोर जोर से नीचे मारते है तो देवता को चोट लगती है और मजबूर होकर देवता कार्य करता है
४. अढैया साबर  इस प्रकार के साबर मंत्र बड़े ही प्रबल माने जाते है और इन मन्त्रों के प्रभाव से प्रत्यक्षीकरण बहुत जल्दी होता है  प्रत्यक्षीकरण इन मन्त्रों की मुख्य विशेषता है और यह मंत्र लगभग ढ़ाई पंक्तियों के ही होते है ! अधिकतर अढैया मन्त्रों में दुहाई और धमकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता पर फिर भी यह पूर्ण प्रभावी होते है
५. डार साबर – डार साबर मन्त्र एक साथ अनेक देवताओं का दर्शन करवाने में सक्षम है जिस प्रकार बारह भाई मसान” साधना में बारह के बारह मसान देव एक साथ दर्शन दे जाते है  अनेक प्रकार के देवी देवता इस मंत्र के प्रभाव से दर्शन दे जाते है जैसेचार वीर साधना” इस मार्ग से की जाती है और चारों वीर एक साथ प्रकट हो जाते है  इन मन्त्रों की जितनी प्रशंसा की जाए उतना ही कम है यह दिव्य सिद्धियों को देने वाले और हमारे इष्ट देवी देवताओं का दर्शन करवाने में पूर्ण रूप से सक्षम है  गुरु अपने कुछ विशेष शिष्यों को ही इस प्रकार के मन्त्रों का ज्ञान देते है
           नाथ पंथ की महानता को देखकर बहुत से पाखंडी लोगो ने अपने आपको नाथ पंथी घोषित कर दिया है ताकि लोग उनकी बातों पर विश्वास कर ले  ऐसे लोगो से यदि यह पूछा जाये कि आप बारह पन्थो में से किस पंथ से सम्बन्ध रखते है ?आपकी दीक्षा किस पीठ से हुयी है आपके गुरु कौन है तो इन लोगो का उत्तर होता है कि मैं बताना जरूरी नहीं समझता क्योंकि इन लोगो को इस विषय में ज्ञान ही नहीं होता पर आज के इस युग में लोग बड़े समझदार है और इन धूर्तो को आसानी से पहचान लेते है
ऐसे महापाखंडीयो ने ही प्रचार किया है कि सभी साबर मन्त्र ” गोरख वाचा ” है अर्थात गुरु गोरखनाथ जी के मुख से निकले हुए है पर मेरा ऐसे लोगो से एक ही प्रशन है क्या जो मन्त्र कानिफनाथ जी ने रचे है वो भी गोरख वाचा है क्या जालंधरनाथ जी के रचे मन्त्र भी गोरख वाचा है इन मंत्रो की बात अलग है पर क्या मुस्लिम साबर मन्त्र भी गोरख वाचा है ऐसा नहीं है मुस्लिम साबर मन्त्र मुस्लिम फकीरों द्वारा रचे गए है
भगवान् शिव ने सभी मंत्रो को कीलित कर दिया पर साबर मन्त्र कीलित नहीं है  साबर मन्त्र कलयुग में अमृत स्वरुप है  साबर मंत्रो को सिद्ध करना बड़ा ही सरल है न लम्बे विधि विधान की आवश्यकता और न ही करन्यास और अंगन्यास जैसी जटिल क्रियाए  इतने सरल होने पर भी कई बार साबर मंत्रो का पूर्ण प्रभाव नहीं मिलता क्योंकि साबर मन्त्र सुप्त हो जाते है ऐसे में इन मंत्रो को एक विशेष क्रिया द्वारा जगाया जाता है
साबर मंत्रो के सुप्त होने के मुख्य कारण -

१. यदि सभा में साबर मन्त्र बोल दिए जाये तो साबर मन्त्र अपना प्रभाव छोड़ देते है
२.यदि किसी किताब से उठाकर मन्त्र जपना शुरू कर दे तो भी साबर मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते
३.साबर मन्त्र अशुद्ध होते है इनके शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता क्योंकि यह ग्रामीण भाषा में होते है यदि इन्हें शुद्ध कर दिया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है
४.प्रदर्शन के लिए यदि इनका प्रयोग किया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है !
५.यदि केवल आजमाइश के लिए इन मंत्रो का जप किया जाये तो यह मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते
ऐसे और भी अनेक कारण है  उचित यही रहता है कि साबर मंत्रो को गुरुमुख से प्राप्त करे क्योंकि गुरु साक्षात शिव होते है और साबर मंत्रो के जन्मदाता स्वयं शिव है  शिव के मुख से निकले मन्त्र असफल हो ही नहीं सकते
साबर मंत्रो के सुप्त होने का कारण कुछ भी हो इस विधि के बाद साबर मन्त्र पूर्ण रूप से प्रभावी होते है
|| मन्त्र ||
सत नमो आदेश! गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी ,ड़ार शाबर बर्भर जागे जागे अढैया और बराट
मेरा जगाया न जागेतो तेरा नरक कुंड में वास ,दुहाई शाबरी माई की,दुहाई शाबरनाथ की ,आदेश गुरु गोरख को,
|| विधि ||
इस मन्त्र को प्रतिदिन गोबर का कंडा सुलगाकर उसपर गुगल डाले और इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे! जब तक मन्त्र जाप हो गुगल सुलगती रहनी चाहिये  यह क्रिया आपको २१ दिन करनी है अच्छा होगा आप यह मन्त्र अपने गुरु के मुख से ले या किसी योग्य साधक के मुख से ले ! गुरु कृपा ही सर्वोपरि है कोई भी साधना करने से पहले गुरु आज्ञा जरूर ले
|| प्रयोग विधि ||
जब भी कोई साधना करे तो इस मन्त्र को जप से पहले ११ बार पढ़े और जप समाप्त होने पर ११ बार दोबारा पढ़े मन्त्र का प्रभाव बढ़ जायेगा! यदि कोई मन्त्र बार बार सिद्ध करने पर भी सिद्ध न हो तो किसी भी मंगलवार या रविवार के दिन उस मन्त्र को भोजपत्र या कागज़ पर केसर में गंगाजल मिलाकर अनार की कलम से या बड के पेड़ की कलम से लिख ले  फिर किसी लकड़ी के फट्टे पर नया लाल वस्त्र बिछाएं और उस वस्त्र पर उस भोजपत्र को स्थापित करे  घी का दीपक जलाये अग्नि पर गुगल सुलगाये और शाबरी देवी या माँ पार्वती का पूजन करे और इस मन्त्र को १०८ बार जपे फिर जिस मन्त्र को जगाना है उसे १०८ बार जपे और दोबारा फिर इसी मन्त्र का १०८ बार जप करे  लाल कपडे दो मंगवाए और एक घड़ा भी पहले से मंगवा कर रखे  जिस लाल कपडे पर भोजपत्र स्थापित किया गया है उस लाल कपडे को घड़े के अन्दर रखे और भोजपत्र को भी घड़े के अन्दर रखे  दुसरे लाल कपडे से भोजपत्र का मुह बांध दे और दोबारा उस कलश का पूजन करे और शाबरी माता से मन्त्र जगाने के लिए प्रार्थना करे और उस कलश को बहते पानी में बहा दे  घर से इस कलश को बहाने के लिए ले जाते समय और पानी में कलश को बहाते समय जिस मन्त्र को जगाना है उसका जाप करते रहे  यह क्रिया एक बार करने से ही प्रभाव देती है पर फिर भी इस क्रिया को ३ बार करना चाहिये मतलब रविवार को फिर मंगलवार को फिर दोबारा रविवार को
भगवान् आदिनाथ और माँ शाबरी आप सबको मन्त्र सिद्धि प्रदान करे


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