Sunday, 3 April 2016

पितृ दोष

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पितृ दोष के विशेष योग और उपाय :पितृ दोषमातृ दोषभ्रातृ दोषमातुल दोषप्रेत दोष :स्वास्थ्य के लिये टोटके : क्यों नहीं करना चाहिए एक ही गौत्र में विवाह कितने गुण मिलने चाहिए:विवाह सम्बन्धित कुछ उपयोगी बातें:
पितृ दोष के विशेष योग और उपाय :पितृ दोषमातृ दोषभ्रातृ दोषमातुल दोषप्रेत दोष :स्वास्थ्य के लिये टोटके   : क्यों नहीं करना चाहिए एक ही गौत्र में विवाह कितने गुण मिलने चाहिए:विवाह सम्बन्धित कुछ उपयोगी बातें:

  :सूर्य के कारण है पितृ दोष तो करें ये चमत्कारी उपाय:  पितृ दोष के विशेष योग और उपाय :पितृ दोषमातृ दोषभ्रातृ दोषमातुल दोषप्रेत दोष :स्वास्थ्य के लिये टोटके   : क्यों नहीं करना चाहिए एक ही गौत्र में विवाह कितने गुण मिलने चाहिए:विवाह सम्बन्धित कुछ उपयोगी बातें:  किन बातों का ध्यान रखें कन्या से विवाह करते समय.  :पति पत्नी में कलेश दूर करने के लिए : वैवाहिक सुख के लिए:जानिए सभी ग्रहों के दोष निवारण/शांति के सामान्य उपाय/टोटक: अगर आपको संतान प्राप्ति नहीं हो रही है: गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं:
सूर्य के कारण है पितृ दोष तो करें ये चमत्कारी उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर यह बताया जा सकता है कि उसे पितृ दोष है या नही और यदि है किन ग्रहों के कारण। उन ग्रहों के उपाय कर इस दोष के प्रभाव को कुछ कम किया जा सकता है। ज्योतिषिय मत के अनुसार पितृ दोष होने का एक कारण सूर्य की अशुभ ग्रहों के साथ बन रही युति भी है। यदि आपकी कुंडली में भी इसी वजह से पितृ दोष बन रहा है तो नीचे लिखे उपाय करें-
रविवार के दिन घर में विधि-विधान पूर्वक सूर्य यंत्र स्थापित करें। रोज इस यंत्र का पूजन विधि-विधान पूर्वक करें। 
सूर्य को रोज तांबे के लोटे में जल उसमें लाल फूलकुंकुम व चावल मिला कर अध्र्य दें।
 - इस मंत्र का जप रोज करें। मंत्र जप करते समय आपका मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए
ऊँ आदित्याय विद्महेप्रभाकरायधीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।। 
 पांच मुखी रूद्राक्ष धारण करें व रोज 12 ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें। 
बुजुर्गों का अपमान न करें तथा उनकी मदद का प्रयास करें। 
रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से निकलते समय गुड़ खाएं। 
लग्न के अनुसार सोने ये तांबे में रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि-विधान से धारण करें।
 by d.d.ujjain
 पितृ दोष के विशेष योग और उपाय
जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है.
 यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैंबहुत खराब हो सकते हैंमिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है.
 सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है! इसका क्या कारण हो सकता है?
 कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है.
तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है.
बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं.
 जिनमें पितृ दोषमातृ दोषभ्रातृ दोषमातुल दोषप्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है.
 इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानिआर्थिक संकटव्यवसाय में रुकावटसंतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है.
पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं. उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :- 
   जन्म कुण्डली के पहलेदूसरेचौथेपांचवेंसातवेंनौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है.
 इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है. 
  सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है. 
  किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठेआठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है.  
 जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठेआठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटनाचोटज्वरनेत्र रोगऊपरी बाधातरक्की में रुकावटबनते कामों में विघ्नअपयश की प्राप्ति,धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना बनती है.
 उपाय  Remedies  
   यदि आपकी कुण्डली में उपरोक्त पितृ दोष में से कोई एक बन रहा है तब आपको जिस रविवार को संक्रांति पड़ रही है या अमावस्या पड़ रही है उस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए.
उन्हें यथा संभव दक्षिणा भी देनी चाहिए. पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष के प्रभाव में कमी आती है. 
  जन्म कुंडली में चंद्र-राहुचंद्र-केतुचंद्र-बुधचंद्र-शनिआदि की युति से मातृ दोष होता है. यह दोष भी पितृ दोष की ही भाँति है.     इन योगों में चंद्र-राहुऔर सूर्य-राहु की युति को ग्रहण योग कहते हैं. यदि बुध की युति राहु के साथ है तब यह जड़त्व योग बनता है. इन योगों के प्रभावस्वरुप भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार ही अशुभ फल मिलते हैं. वैसे चंद्र की युति राहु के साथ कभी भी शुभ नही मानी जाती है. इस युति के प्रभाव से माता या पत्नी को कष्ट होता हैमानसिक तनाव रहता है,आर्थिक परेशानियाँगुप्त रोगभाई-बांधवों से वैर-विरोधपरिजनों का व्यवहार परायों जैसा होने के फल मिल सकते हैं.  
 जन्म कुण्डली में दशम भाव का स्वामी छठेआठवें अथवा बारहवें भाव में हो और इसका राहु के साथ दृष्टि संबंध या युति हो रही हो तब भी पितृ दोष का योग बनता है.  
 यदि जन्म कुंडली में आठवें या बारहवें भाव में गुरु व राहु का योग बन रहा हो तथा पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तब पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान से सुख में कमी रहती है. 
  बारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित होअष्टम भाव का स्वामी पंचम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह भी पितृ दोष की कुंडली बनती है और इस दोष के कारण धन हानि या संतान के कारण कष्ट होता है.
   इन योगों के अतिरिक्त कुंडली में कई योग ऎसे भी बन जाते हैं जो कई प्रकार से कष्ट पहुंचाने का काम करते हैं. जैसे पंचमेश राहु के साथ यदि त्रिक भावों (6, 8, 12) में स्थित है और पंचम भाव शनि या कोई अन्य क्रूर ग्रह भी है तब संतान सुख में कमी हो सकती है. शनि तथा राहु के साथ अन्य शुभ ग्रहों के मिलने से कई तरह के अशुभ योग बनते हैं जो पितृ दोष की ही तरह बुरे फल प्रदान करते हैं.  पितृ दोष की शांति के विशेष उपाय यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तब वह सरल उपायों के द्वारा भी पितृ दोष के प्रभाव को कम कर सकता है.
 यह उपाय निम्नलिखित हैं :-  
  यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब उस व्यक्ति को अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर उन्हें सम्मानित करना चाहिए. पूर्वजों की मृत्यु की तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिएअपनी सामर्थ्यानुसार वस्त्र और दान-दक्षिणा आदि देनी चाहिए. नियम से पितृ तर्पण और श्राद्ध करते रहना चाहिए.
    जिन व्यक्तियों के माता-पिता जीवित हैं उनका आदर-सत्कार करना चाहिए. भाई-बहनों का भी सत्कार आपको करते रहना चाहिए. धनवस्त्रभोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए. 
  प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सीथोड़ा गंगाजलकाले तिलचीनी,चावलजल तथा पुष्प अर्पित करें और ऊँ पितृभ्य: नम:” मंत्र का जाप करें. उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है. 
  प्रत्येक संक्रांतिअमावस्या और रविवार के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदनगंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य दें.
   प्रत्येक अमावस्या के दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए. पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए. त्रयोदशी को नीलकंठ स्तोत्र का पाठ करनापंचमी तिथि को सर्पसूक्त पाठपूर्णमासी के दिन श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए. इससे भी पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है. 
  पितरों की शांति के लिए जो नियमित श्राद्ध किया जाता है उसके अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में गाय को चारा खिलाना चाहिए. कौओंकुत्तों तथा भूखों को खाना खिलाना चाहिए. इससे शुभ फल मिलते हैं.     श्राद्ध के दिनों में माँस आदि का मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शराब तथा अंडे का भी त्याग करना चाहिए. सभी तामसिक वस्तुओं को सेवन छोड़ देना चाहिए और पराये अन्न से परहेज करना चाहिए.
   पीपल के वृक्ष पर मध्यान्ह में जलपुष्पअक्षतदूधगंगाजलकाले तिल चढ़ाएँ. संध्या समय में दीप जलाएँ और नाग स्तोत्रमहामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें. ब्राह्मण को भोजन कराएँ. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है.   
सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लेंकच्ची लस्सीबिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें. ऎसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है. 
  प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है. 
  कुंडली में पितृ दोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है.  
 ब्राह्मणों को गोदानकुंए खुदवानापीपल तथा बरगद के पेड़ लगवानाविष्णु भगवान के मंत्र जापश्रीमदभागवत गीता का पाठ करनापितरों के नाम पर अस्पतालमंदिरविद्यालयधर्मशालाआदि बनवाने से भी लाभ मिलता है.
 पितृदोष के कारण संतान कष्ट होने के उपाय |
पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा तथा रुकावटों का सामना करना पड़ता है.
 इन बाधाओं के निवारण के लिए कुछ उपाय हैं जो निम्नलिखित हैं :-
1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहुसूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए नारायण बलि,नाग बलिगया में श्राद्धआश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्धपितृ तर्पणब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है.
2. मातृ दोष |
यदि कुंडली में चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर शनिराहुमंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रान्त हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में है तब मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी का अनुभव हो सकता है. मातृ दोष के शांति उपाय |यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मातृ दोष बन रहा है तब इसकी शांति के लिए गोदान करना चाहिए या चांदी के बर्तन में गाय का दूध भरकर दान देना शुभ होगा. इन शांति उपायों के अतिरिक्त एक लाख गायत्री मंत्र का जाप करवाकर हवन कराना चाहिए तथा दशमांश तर्पण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिएवस्त्रादि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार् करना चाहिए. इससे मातृ दोष की शांति होती है. मातृ दोष की शांति के लिए पीपल के वृक्ष की 28 हजार परिक्रमा करने से भी लाभ मिलता है.
3. भ्रातृ दोष |
 तृतीय भावेश मंगल यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु के साथ पंचम भाव में हो तथा पंचमेश व लग्नेश दोनों ही अष्टम भाव में है तब भ्रातृ शाप के कारण संतान प्राप्ति बाधा तथा कष्ट का सामना करना पड़ता है. भ्रातृ दोष के शांति उपाय भ्रातृ दोष की शांति के लिए श्रीसत्यनारायण का व्रत रखना चाहिए और सत्यनारायण भगवान की कथा कहनी या सुननी चाहिए तथा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके सभी को प्रसाद बांटना चाहिए.
 4. सर्प दोष |
यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या मंगल की राशि में राहु हो तब सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या संतान हानि होती है. सर्प दोष के शांति उपाय सर्प दोष की शांति के लिए नारायण नागबली विधिपूर्वक करवानी चाहिए. इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिएउन्हें वस्त्रगाय दानभूमि दान,तिलचांदी या सोने का दान भी करना चाहिए. लेकिन एक बात ध्यान रखें कि जो भी करें वह अपनी यथाशक्ति अनुसार करें.
5. ब्राह्मण श्राप या दोष |
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि धनु या मीन में राहु स्थित है और पंचम भाव में गुरुमंगल व शनि हैं और नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में है तब यह ब्राह्मण श्राप की कुंडली मानी जाती है और इस ब्राह्मण दोष के कारण ही संतान प्राप्ति में बाधासुख में कमी या संतान हानि होती है. ब्राह्मण श्राप के शांति उपाय ब्राह्मण श्राप की शांति के लिए किसी मंदिर में या किसी सुपात्र ब्राह्मण को लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों का दान करना चाहिए. व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार किसी कन्या का कन्यादान भी कर सकता है. बछड़े सहित गाय भी दान की जा सकती है. शैय्या दान की जा सकती है. सभी दान व्यक्ति को दक्षिणा सहित करने चाहिए. इससे शुभ फलों में वृद्धि होती है और ब्राह्मण श्राप या दोष से मुक्ति मिलती है.
 6. मातुल श्राप |
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव में मंगलबुधगुरु तथा राहु हो तब मामा के श्राप से संतान प्राप्ति में बाधा आती है. मातुल श्राप के शांति उपाय मातुल श्राप से बचने के लिए किसी मंदिर में श्री विष्णु जी की प्रतिमा की स्थापना करानी चाहिए. लोगों की भलाई के लिए पुलतालाबनल या प्याउ आदि लगवाने से लाभ मिलता है और मातुल श्राप का प्रभाव कुछ कम होता है.
7. प्रेत श्राप |
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पंचम भाव में शनि तथा सूर्य हों और सप्तम भाव में कमजोर चंद्रमा स्थित हो तथा लग्न में राहुबारहवें भाव में गुरु हो तब प्रेत श्राप के कारण वंश बढ़ने में समस्या आती है. यदि कोई व्यक्ति अपने दिवंगत पितरों और अपने माता-पिता का श्राद्ध कर्म ठीक से नहीं करता हो या अपने जीवित बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रह हो तब इसी प्रेत बाधा के कारण वंश वृद्धि में बाधाएँ आ सकती हैं. प्रेत श्राप के शांति उपाय |
 प्रेत शांति के लिए भगवान शिवजी का पूजन करवाने के बाद विधि-विधान से रुद्राभिषेक कराना चाहिए. ब्राह्मणों को अन्न,वस्त्रफलगोदान आदि उचित दक्षिणा सहित अपनी यथाशक्ति अनुसार देनी चाहिए. इससे प्रेत बाधा से राहत मिलती है. गयाजीहरिद्वारप्रयाग आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान तथा दानादि करने से लाभ और शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान  गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता
 गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं

प्रथम मास — – शुक्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को )
द्वितीय मास — –मंगल ( गुड ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को )
तृतीय मास — – गुरु ( पीला वस्त्र ,हल्दी ,स्वर्ण पपीता ,चने कि दाल बेसन व दक्षिणा गुरूवार को )
चतुर्थ मास — – सूर्य ( गुड गेहूं ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र लाल फल व दक्षिणा रविवार को )
पंचम मास —- चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )
षष्ट मास — –- शनि ( काले तिल ,काले उडद ,तेल ,लोहा ,काला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को )
सप्तम मास —– बुध ( हरा वस्त्र ,मूंग ,कांसे का पात्र ,हरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को )
अष्टम मास —- गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित दान उसके वार में |यदि पता न हो तो अन्न ,वस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही नकार दें |
नवं मास —- चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )


पितृ दोष के बारे में इतनी चर्चा करने के बाद आइए अब विचार करें कि जन्म कुंडली में उपस्थित किन लक्षणों से कुंडली में पितृ दोष के होने का पता चलता है। नव-ग्रहों में सूर्य सपष्ट रूप से पूर्वजों के प्रतीक माने जाते हैंइस लिए किसी कुंडली में सूर्य को बुरे ग्रहों के साथ स्थित होने से या बुरे ग्रहों की दृष्टि से अगर दोष लगता है तो यह दोष पितृ दोष कहलाता है। इसके अलावा कुंडली का नवम भाव पूर्वजों से संबंधित होता हैइस लिए यदि कुंडली के नवम भाव या इस भाव के स्वामी को कुंडली के बुरे ग्रहों से दोष लगता है तो यह दोष भी पितृ दोष कहलाता है। पितृ दोष प्रत्येक कुंडली में अलग-अलग तरह के नुकसान कर सकता है जिनका पता कुंडली का विस्तारपूर्वक अध्ययन करने के पश्चात ही चल सकता है। पितृ दोष के निवारण के लिए सबसे पहले कुंडली में उस ग्रह या उन ग्रहों की पहचान की जाती है जो कुंडली में पितृ दोष बना रहे हैं और उसके पश्चात उन ग्रहों के लिए उपाय किए जाते हैं जिससे पितृ दोष के बुरे असरों को कम किया जा सके।
पितृदोष की शांति के सरल और सस्ते उपाय..

आमतौर पर पितृदोष के लिए खर्चीले उपाय बताए जाते हैं लेकिन यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तो भी परेशान होने की कोई बात नहीं। पितृदोष का प्रभाव कम करने के लिए ऐसे कई आसान,सस्ते व सरल उपाय भी हैं जिनसे इसका प्रभाव कम हो सकता है।
1. कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर रोजाना उनकी पूजा स्तुति करना चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

2. अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।

3. इसी दिन अगर हो सके तो अपनी सामर्थ्यानुसार गरीबों को वस्त्र और अन्न आदि दान करने से भी यह दोष मिटता है

4. पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जलपुष्पअक्षतदूधगंगाजलकाले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।
5. शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्रमहामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।

6. सोमवार प्रात:काल में स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्पकच्ची लस्सीबिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।

7. कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।

8. पितरों के नाम पर गरीब विद्यार्थियों की मदद करने तथा दिवंगत परिजनों के नाम से अस्पतालमंदिरविद्यालयधर्मशाला आदि का निर्माण करवाने से भी अत्यंत लाभ मिलता है।
पितृ दोष
       पितृ ऋण या पितृ दोष जन्म -कुंडली में एक ऐसा दोष है जोकि  इन्सान की प्रगति में बाधक होता  है।  किसी भी कुंडली को देखने से यह बताया  है कि जातक को किस प्रकार का ऋण दोष है।
 सबसे पहले तो यह जानते हैं कि पितृ दोष क्या है। इसके बहुत सारे ज्योतिषीय कारण  है। इसे  राहू सूर्य        वृहस्पति की विभिन्न भावों में स्थिति से जाना जा सकता है।  यह भी कई प्रकार के होते हैं जैसे पितृ ऋण स्त्री ऋण भगिनी ऋण ,भ्राता ऋण गुरु ऋण मातृ ऋण आदि। यहाँ मैं सिर्फ सामान्य जन को समझ आये वह भाषा  ही कहूँगी क्यूंकि हर किसी को कुंडली की समझ नहीं होती।
         पूर्व जन्म में यदि किसी ने किसी को संताप दिया हो जैसे दैहिक भौतिक  या मानसिक भी तो वह अगले जन्म में उस जातक की कुंडली में दोष बन कर जीवन में बाधा का कारण  बन जाता है।
लक्षण :--
   १) . परिवार में अशांति विशेषतया भोजन के  समय कोई बहस या तकरार।
   २ ). कन्या संतान का जन्म और पुत्र का अभाव।
   ३ ). धन की  बरकत न होना।
   ४ ). घर में बीमारी बनी रहना।
   ५ ). निसन्तान रहना।
   ६ ). बच्चों के विवाह में अड़चन।
   ७ ). कोई भी शुभ काम के बाद कोई अशुभ होना। जैसे झगड़ा चोट लगना आग लगना मौत या मौत की खबर आदि कोई भी अशुभ समाचार मिलना।
 यदि उपरोक्त लक्षण  घर में दिखाई देते  जन्म कुंडली दिखा कर उचित उपचार से शांति पाई जा सकती है।
  
    कई बार यह भी देखने में आया है कि जन्म कुंडली में कोई दोष नहीं होता है फिर भी जातक मुश्किलों में घिरा रहता है। तो इसके लिए उसे अपने परिवार की पृष्ठभूमि  पर विचार करना चाहिए।  क्या उनके परिवार में उनके पूर्वजों का विधिवत श्राद्ध किया जाता है। क्या उसके पूर्वजों को  कहीं से मुफ्त का धन तो नहीं मिला।
       कुछ लोग श्राद्ध करने की बजाय मजबूरों को भोजन करवाना अधिक उचित समझते हैं। उनका तर्क होता है कि ब्राह्मणों की बजाय ये लोग ज्यादा आशीर्वाद देंगे।  यह बात सही है कि किसी भी भूखे को भोजन करवाएंगे तो वह आशीर्वाद देगा ही। तो आशीर्वाद के लिए जरुर भोजन करवाएं।  लेकिन श्राद्ध कर्म तो एक ब्राह्मण ही कर सकता है और तभी पूर्वजों का आशीर्वाद भी मिलेगा।  यह श्राद्ध करने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह सुपात्र को ही आमंत्रित करे।  मंदिर का पुजारी हो तो अधिक  उचित रहेगा नहीं तो कोई भी कर्मकांडी या जनेउ धारी ब्राह्मण होना चाहिए।
           मुफ्त का धन जिसे  कोई निसन्तान व्यक्ति अपनी जायदाद विरासत में दे जाता है या ससुराल से मिला धन। मैं यहाँ उस धन की बात नहीं कर रही जो किसी स्त्री को उसके विवाह में मिला है। यहाँ मैं कहना चाहूंगी की यह वो धन है जो ससुराल में स्त्री के पिता की मृत्यु के बाद मिला है जबकि उसके भाई ना हो। ऐसी स्थिति में धन का उपभोग तो हो रहा है लेकिन जिसके धन का उपभोग हो रहा है उसके नाम का कोई भी दान -पुन्य नहीं किया जा रहा।
           हमारे समाज में वंश परम्परा चलती है इसी के सिलसिले में पुत्र का जन्म अनिवार्य माना गया है। अगर पुत्र ना हो तो उसकी विरासत पुत्रियों में बाँट दी जाती है। जैसे की समाज का चलन है तो विचार भी यही  हैं कि अगर पुत्र नहीं होगा तो उसका कमाया धन लोग ही खायेंगे। उनका नाम लेने वाला कोई नहीं होगा आदि -आदि। जब ऐसे इन्सान के धन का उपभोग किया जाये और उसके नाम को भी याद ना किया जाये तो घर में अशांति तो होगी ही। एक अशांत आत्मा किसी को खुश रहने का आशीर्वाद कैसे दे सकती है। ऐसी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध तो करना ही चाहिए।  साथ ही वर्ष में एक बार उसके नाम का कोई दान कर देना चाहिए।  जैसे किसी जरूरत मंद कन्या का विवाह कहीं पानी की व्यवस्था या किसी बच्चे की स्कूल की फीस आदि कुछ न कुछ धन राशि जरुर उसके नाम की निकालनी चाहिए।
         जब किसी को परिवार से ही जैसे ताऊ या  चाचा जो कि या  निसन्तान हो या अविवाहित हो।  अथवा असमय अकाल मौत हुई हो और उनका कोई वारिस ना  हो तो ऐसे धन का उपभोग भी  परिवार में अशांति लाता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे धन को उपभोग  वाले की सबसे  छोटी संतान अधिक संताप भोगती है।
            'ऐसे में  फिर क्या किया जाए  ?'
    यहाँ भी जिसका भी धन उपभोग किया जा रहा है उसका विधिवत श्राद्ध और उसके नाम से कुछ धन राशी का दान किया जाये तो शांति  बनी रह सकती है।
        कई बार परिवार के कुल देवता का अनादर भी परिवार में अशांति  का कारण बनती है। ये जो  कुल देवता या पितृ होते हैं वे हमारे और ईश्वर के मध्य संदेशवाहक का कार्य हैं।  यदि ये प्रसन्न होंगे तो ईश्वर की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।
         कई बार कोई व्यक्ति किसी निसंतान दम्पति द्वारा  गोद लिया जाता है। ऐसे में उसे वह जिस परिवार में जन्मा हैउस परिवार के कुल देवताओं की पूजा भी करने पड़ती है। क्यूंकि उसमें उस परिवार का (जहाँ जन्म लिया है उसने ) भी ऋण चुकाना होता है। जहाँ वह रहता है वहां के कुल देवता की भी पूजा करनी होती है उसे। तभी उसके जीवन में शांति बनी रहती है।


          दोष हैं तो हल भी है :--
 १ ) .  श्राद्ध कर के ब्राह्मण को वस्त्र -दक्षिणा आदि दीजिये।
२ ).  गाय की सेवा कीजिये।  इसके लिए किसी भी मजबूर व्यक्ति की गाय के लिए साल भर के लिए चारे की व्यवस्था कीजिये।
३ ). चिड़ियों को बाजरी के दाने  डालिए।
४ ). कोवों को रोटी।
५ ). हर अमावस्या को मंदिर में सूखी रसोई और दूध का दान कीजिये।
६ ).  हर मौसम में जो भी नई सब्जी और फल हो उसे पहले अपने पितरों और कुल देवताओं के नाम मंदिर में दान दीजिये।
७ ). हर अमावस्या को गाय को हरा चारा डलवायें।
८ ) . किसी धार्मिक स्थल पर आम और पीपल का वृक्ष लगवा दे।
९ ). तुलसी की सेवा।
१०). अपने पूर्वजों के नाम पर जल की व्यवस्था करनी चाहिए।
पितरो  के निमित्त  दूध देने की विधि :--- एक गिलास कच्चे  दूध में  चीनी मिला कर  छान लीजिये। अब थोडा दूध एक कटोरी में डाल  कर उसे अपनी हथेली से ढक कर विष्णु भगवान को स्मरण करते हुए कहिये , " विष्णु भगवान के लिए। " गिलास के बचे हुए दूध को भी हथेली से ढकते हुए कहिये , " सभी पितरों के लिए। " अब कटोरी के दूध को गिलास के दूध में मिला दीजिये।  यह दूध पुजारी को पीने को दीजिये साथ ही श्रद्धा अनुसार दक्षिणा भी दीजिये।
        सुन्दर काण्ड गीता और आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ भी पितृ दोष में शांति देता है।


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