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चांडाल शब्द का अर्थ होता है क्रूर कर्म करनेवाला, नीच कर्म करनेवाला. इस चांडाल शब्द पे से ज्योतिष -शास्त्र में एक योग है. जिसे गुरु चांडाल योग या विप्र योग कहा जाता है. राहू और केतु दोनों छाया ग्रह है. पुराणों में यह राक्षस है. राहू और केतु के लिए बड़े सर्प या अजगर की कल्पना करने में आती है. राहू सर्प का मस्तक है तो केतु सर्प की पूंछ. ज्योतिषशास्त्र में राहू -केतु दोनों पाप ग्रह है. अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ हो उस भाव या उस ग्रह संबंधी अनिष्ठ फल दर्शाता है. यह दोनों ग्रह चांडाल जाती के है. इसलिए गुरु के साथ इनकी युति गुरु चांडाल या विप्र (गुरु) चांडाल ( राहू-केतु ) योग कहा जाता है.
राहू-केतु जिस तरह गुरु के साथ चांडाल योग बनाते है इसी तरह अन्य ग्रहों के साथ चांडाल योग बनाते है जो निम्न प्रकार के है.
१) रवि-चांडाल योग : सूर्य के साथ राहू या केतु हो तो इसे रवि चांडाल योग कहते है. इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता है. उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है. पिता के साथ मतभेद रहता है और संबंध अच्छे नहीं होते. पिता की तबियत भी अच्छी नहीं रहती.
२) चन्द्र-चांडाल योग : चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है. इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता. माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है. नास्तिक होने की भी संभावना होती है.
३) भौम-चांडाल योग : मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है. इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है. स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है. आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है.
४) बुध-चांडाल योग : बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है. बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है. और जातक अधर्मी. धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है.५) गुरु-चांडाल योग : गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है.ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है.
६) भृगु-चांडाल योग : शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है. इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है. वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है. विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होतीहै.
७) शनि-चांडाल योग : शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है. इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है. यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है. जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है. ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता. यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है.
२) चन्द्र-चांडाल योग : चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है. इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता. माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है. नास्तिक होने की भी संभावना होती है.
३) भौम-चांडाल योग : मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है. इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है. इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है. स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है. आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है.
४) बुध-चांडाल योग : बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है. बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है. और जातक अधर्मी. धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है.५) गुरु-चांडाल योग : गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है.ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है.
६) भृगु-चांडाल योग : शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है. इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है. वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है. विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होतीहै.
७) शनि-चांडाल योग : शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है. इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है. यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है. जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है. ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता. यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है.
उपरोक्त सभी चांडाल योग ज्योतिषशाश्त्र में मिलते नहीं है. पर यहाँ गुरु चांडाल योग के सिद्धांत पे से दर्शाया गया है. राहू-केतु के साथ जो ग्रह है उनके भावाधिपत्य और उनपर अन्य ग्रहों की युति-इष्ठ या परिवर्तन के संबंधो से फलकथन में बदलाव आना संभव है.
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