Sunday, 10 April 2016

श्वेतार्क एक चमत्कारिक दिव्यौषधी

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श्वेतार्क जिसे ग्रामीण भाषा में आक अथवा मदार भी कहा जाता है । रंग भेद से यह दो प्रकार का होता है, एक सफेद तथा दूसरा लाल, सफेद फूल वाले मदार को ही श्वेतार्क कहा जाता है। आयुर्वेदिक मत्नुतानुसार दोंनों प्रकार के आक का गुण एक समान होता है, तथा दोनों प्रकार की आर्क को औषधिय उपयोग में लाया जाता है। मगर तंत्र शास्त्र में सफेद फूल वाले मदार को दुर्लभ एवं चमत्कारिक बताया गया है। इसके फूलों को ध्यान से देखने पर गणपति का स्पष्ट स्वरूप दिखाई देता है। इसके पुष्पों को भगवान शंकर पर चढ़ाया जाता है।

विधी – उक्त मंत्र को किसी भी शुभ मुहुर्त में महाकाली चित्र मंत्र के सामने पूर्व दिशा में मुह कर धूप दीप जलाकर शाबर मंत्र विधी से दश हजार बार मंत्र पढ़ सिद्ध कर लें।
कहा जाता है कि 25 वर्ष पुराने श्वेतार्क के पौधे केजड़ में भगवान गणपति की मूर्ति का निमार्ण प्रकृतिक रूप से हो जाता है ऐसे दुलर्भ श्वेतार्क गणपति की मूर्ति को रवि पुष्य नक्षत्र में विधिवत प्राप्त कर घर में स्थापित कर लिया जाय तो घर में सम्पूर्ण धन, एश्वर्य तथा सुख-सम्पदा की कोई कमी नहीं रहती।
श्वेतार्क के जड़ को यदि रवि पुष्य नक्षत्र के दिन विधि पूवर्क आमंत्रित कर उखाड़ लाये तो यह जड़ी अनेकों प्रकार के चमत्कारिक प्रभाव दिखाने में समर्थ होती है। इसके माध्यम से संमोहन तंत्र भी सिद्ध किया जाता है, तथा कोट-कचहरी मुकदमे में सफलता भी प्राप्त किया जा सकता है।तथा उस पर लाल कपड़ा बाँध दे, फिर उसके जड़ मेें एक वर्ष तक दूध का सींचन करें। ऐसा करने से तने में रखा हुआ पारा सोने में बदल जाता है।

श्वेतार्क के तांत्रिक प्रयोग
रवि पुष्य नक्षत्र में विधि पूर्वक लाये गये श्वेतार्क के जड़ को पहले पानी से फिर दूध तथा गंगा जल से धोकर पवित्र कर सुखा कर लाल कपड़े में लपेटकर रखें। फिर किसी कारिगर से उसके जड़ की गणेश प्रतिमा बनवाकर प्राण प्रतिष्ठित कराकर अपने पूजा स्थान में अथवा दुकान में स्थापित कर दें ऐसा करने से घर धन धान्य सुख सम्पदा से भरने लगता है।
रवि पुष्य नक्षत्र में लाये गये श्वेतार्क के जड़ को पुत्रेष्ठतंत्र शास्त्र में सफेद फूल वाले मदार को दुर्लभ एवं चमत्कारिक बताया गया है। इसके फूलों को ध्यान से देखने पर गणपति का स्पष्ट स्वरूप दिखाई देता है। इसके पुष्पों को भगवान शंकर पर चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि 25 वर्ष पुराने श्वेतार्क के पौधे के
जड़ में भगवान गणपति की मूर्ति का निमार्ण प्रकृतिक रूप से हो जाता है ऐसे दुलर्भ श्वेतार्क गणपति की मूर्ति को रवि पुष्य नक्षत्र में विधिवत प्राप्त कर घर में स्थापित कर लिया जाय तो घर में सम्पूर्ण धन, एश्वर्य तथा सुख-सम्पदा की कोई कमी मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करवाकर स्त्री के कमर में बाँधने से निश्चय ही पुत्र की प्राप्ती होती है।

श्वेतार्क की जड़ तथा गोरोचन को गाय के दूध के साथ पीस कर तिलक लगा लें तो सर्व जगत मोहित हो जाता है। श्वेतार्क के पौधे से कीमियागर सोना भी बनाते थे। श्वेतार्क के पौधे के तने में एक बड़ा छेद कर उसमें पारा भर कर छेद को मोम से बंद कर
दे तथा उस पर लाल कपड़ा बाँध दे, फिर उसके जड़ मेें एक वर्ष तक दूध का सींचन करें। ऐसा करने से तने में रखा हुआ पारा सोने में बदल जाता है।
श्वेतार्क को अभिमंत्रित कर उसके एक पत्ती को प्रसव वेदना से पीडि़त स्त्री के कमर परबाँध देने से तत्काल सुख पूर्वक प्रसव हो जाता है।
प्रसव के बाद तुरंत ही पत्ती को निकाल कर नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। श्वेतार्क के औषधिय प्रयोग श्वेतार्क के पुष्पों को तोड़कर उसका लौंग निकाल
कर गुड़ में मिलाकर चने के आकार की गोली तैयार कर लें एक-एक गोली पानी के साथ सेवन करने से उदर के सारे विकार गैष्टिक, कब्ज, भूख न लगना इत्यादि समाप्त हो जाता है।
श्वेतार्क के जड़ का चूर्ण बनाकर एक-एक रत्ती सेवन करने से अल्सर भी ठीक हो जाता है, तथा इसके चूर्ण को शक्कर के साथ लेने से आमवात, उपदंश तथा रक्तातिसार में लाभ होता है।
श्वेतार्क के जड़ की छाल को चूर्ण बनाकर अदरक के रस के साथ खरल कर चने के आकार की गोली बनाकर छाया में सुखा ले एक -एक गोली आधे आधे घण्टें में पानी से सेवन करें। यह हैजे की रामबाण दवा है।
श्वेतार्क के जड़ को बकरी के दूध में पीसकर नाक मेंटपकाने से मिरगी रोग दूर होता है।
श्वास रोग, दमा में श्वेतार्क का दूध दो बंूद गुड़ के साथ सेवन करने से कुछ ही दिनों में दमा समाप्त हो जाता है। ध्यान रहें इसके दूध को सेवन करने से उल्टी हो सकती है, धीरज से पचाये।
श्वेतार्क के पुष्पों की लौंग और काली मिर्च बराबरमात्रा में मिलाकर 6 घण्टे तक खरल कर दो-दो रत्ती की गोली बना लें एक-दो गोली पानी के साथ देने से श्वास, दमा, हिष्टिरिया, मिरगी, अपस्मार में लाभ होता है।
श्वेतार्क के पत्ती तथा सेंधा नमक बराबर मात्रा में मिलाकर मिट्टी के पात्र में भर कर आग पर चढ़ा दे, जब भस्म तैयार हो जाये तो उसका चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण का दो मासा गरम पानी से सेवन करें तो गुल्म, प्लीहा तथा उदर विकार ठीक हो जाता है।
यदि उक्त चूर्ण को शहद के साथ सेवन कराये तो श्वास, कास, शोथ, अर्जीण, प्लीहा, मंदाग्नि,अफारा आदि विकार नष्ट हो जाते है।


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