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कुण्डलिनी शक्ति मनुष्य के शरीर की अलौकिक रहस्यमयी एवं अत्यधिक शक्तिशाली उर्जा का श्रोत है परंतु यह शक्ति मनुष्य के शरीर के निचले हिस्से मुलाधार पर सुसुप्ता में पड़ी हुई है, जिसके कारण मनुष्य कुण्डलिनी के चमत्कारिक शक्तियों से बेखबर रहता है।
यदि किसी प्रकार से कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर लिया जाय तो मनुष्य अलौकिक शक्तियों तथा सिद्धियों का स्वामी बन सकता है। तथा मनुष्य मनुष्यता से उपर उठकर देवतुल्य हो जाता है।
परंतु कुण्डलिनी को जगा पाना कोई आसान काम नही क्योंकि कुण्डलिनी को जगाने में बड़े-बड़े साधु संयासियों की उम्र बित जाती है तब कहीं कुण्डलिनी को जगा पाना संभव हो पाता है।
कुण्डलिनी क्या है?
शरीर के अंदर स्थीत एक अलौकिक उर्जा शक्ति के भंडार को कुण्डलिनी कहा गया है। यह शक्ति प्रत्येक व्यक्ति के अंदर मौजुद है परंतु सुप्तावस्था में होने के कारण यह अपने रहस्यमयी एवं चमत्कारिक शक्ति को अपने अंदर समेटे रहती है। कुण्डलिनी की रहस्यमयी उर्जा शाक्ति को विद्युत शक्ति से भी हजारों गुणा अधिक शक्तिशाली माना गया है।
कुण्डलिनी शक्ति प्रत्येक जड़-चेतन वस्तु एवं प्राणियों में अपने अपने-अपने गुण के अनुरूप कम या अधिक मात्रा में विद्यमान रहती है परंतु समस्त प्राणियों की अपेक्षा मनुष्यों की कुण्डलिनी
अधिक सक्रिय होती है।
कुण्डलिनी का स्वरूप
कुण्डलिनी एक पारलौकिक उर्जा शक्ति का केन्द्र है जो शरीर के निचले भाग अर्थात मुलाधार चक्र पर स्थीत है। यह शक्ति सामान्य नजरों से दिखाई नही देती परंतु पौराणिक ग्रंथों मे कुण्डलिनी को सर्पाकार स्वरूप माना है जो प्रतीक रूप में साढ़े तीन कुण्डल मारे सिर को निचे किए हुए मुलाधार चक्र में सुप्तावस्था मे पड़ा हुआ है।
कुण्डलिनी और षट्चक्र
मनुष्य के शरीर का मुख्य आधार है मेरूदण्ड जो मुलधार से सहस्त्रार तक जुड़ा है। इसी अस्थि में शरीर की समस्त नाडि़यां
धमनीयां तथा स्नायुओं के सुचालनार्थ कुछ विषेश स्थान हैं इन्ही स्थानों को षट्चक्र कहा गया है।
इन चक्रों को मुलाधार
स्वधानिष्ठान, मणीपुर, अनहद, विशुद्ध, आज्ञा तथा सहस्त्रार चक्र के नाम से जाना जाता है। इन सभी चक्रों में अपार शक्तियां छुपी हैं जो कुण्डलिनी के जागृत होने के बाद चैतन्य होकर अलौकिक चमत्कारिक रहस्यों को प्रकट करते हुए मनुष्य को अलौकिक शक्तियों का स्वामी बना देती है। यदि किसी प्रकार कुण्डलिनी को जागृत कर लिया जाए तो मनुष्य अनंत शक्तियों का स्वामी बन जाता है।
कुण्डलिनी जागरण होते ही कुण्डलिनी उध्र्वगामी होकर एक-एक कर सभी चक्रों का भेदन करते हुए जब सहस्त्रार चक्र तक पहुंच जाती है तो मनुष्य त्रिकाल दर्शी हो जाता है अर्थात वह भुत, भविष्य तथा वर्तेमान को स्पस्ट रूप से देख सकता है तथा किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसके मन के बातों को जानने में सक्षम हो जाता है।
कुण्डलिनी जागरण के पश्चात् मनुष्य का मन निर्मल तथा शरीर निरोग हो जाता है तथा मन की कृतियां शुद्व पवित्र और सात्वीक हो जाती है।
शक्तिपात से कुण्डलिनी जागरण
कुण्डलिनी जागरण करने की अनेकों पद्धतियां शास्त्रों तथा पुराणों में वर्णित है जैसे- हठयोग, ध्यानयोग, मंत्र साधना, प्राणायाम इत्यादि परंतु इन
विधीयों से कुण्डलिनी जागरण कर पाना अत्यंक कठिन एवं श्रमसाध्य है, जिसमें अत्यधिक परिश्रम और सतत प्रयास की आवश्यकता पड़ती है परंतु शक्तिपात एक ऐसा
माध्यम है जिसके माध्यम से गुरू अपने शिष्य की कुण्डलिनी शक्ति को मात्र एक झटके में ही जागृत कर देते हैं तथा षटचक्रों का भेदन करते हुए कुण्डलिनी को सहस्त्रार तक पहुंचाकर अपने शिष्यों को पूर्णता प्रदान कर सकते है
यदि किसी प्रकार से कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर लिया जाय तो मनुष्य अलौकिक शक्तियों तथा सिद्धियों का स्वामी बन सकता है। तथा मनुष्य मनुष्यता से उपर उठकर देवतुल्य हो जाता है।
परंतु कुण्डलिनी को जगा पाना कोई आसान काम नही क्योंकि कुण्डलिनी को जगाने में बड़े-बड़े साधु संयासियों की उम्र बित जाती है तब कहीं कुण्डलिनी को जगा पाना संभव हो पाता है।
कुण्डलिनी क्या है?
शरीर के अंदर स्थीत एक अलौकिक उर्जा शक्ति के भंडार को कुण्डलिनी कहा गया है। यह शक्ति प्रत्येक व्यक्ति के अंदर मौजुद है परंतु सुप्तावस्था में होने के कारण यह अपने रहस्यमयी एवं चमत्कारिक शक्ति को अपने अंदर समेटे रहती है। कुण्डलिनी की रहस्यमयी उर्जा शाक्ति को विद्युत शक्ति से भी हजारों गुणा अधिक शक्तिशाली माना गया है।
कुण्डलिनी शक्ति प्रत्येक जड़-चेतन वस्तु एवं प्राणियों में अपने अपने-अपने गुण के अनुरूप कम या अधिक मात्रा में विद्यमान रहती है परंतु समस्त प्राणियों की अपेक्षा मनुष्यों की कुण्डलिनी
अधिक सक्रिय होती है।
कुण्डलिनी का स्वरूप
कुण्डलिनी एक पारलौकिक उर्जा शक्ति का केन्द्र है जो शरीर के निचले भाग अर्थात मुलाधार चक्र पर स्थीत है। यह शक्ति सामान्य नजरों से दिखाई नही देती परंतु पौराणिक ग्रंथों मे कुण्डलिनी को सर्पाकार स्वरूप माना है जो प्रतीक रूप में साढ़े तीन कुण्डल मारे सिर को निचे किए हुए मुलाधार चक्र में सुप्तावस्था मे पड़ा हुआ है।
कुण्डलिनी और षट्चक्र
मनुष्य के शरीर का मुख्य आधार है मेरूदण्ड जो मुलधार से सहस्त्रार तक जुड़ा है। इसी अस्थि में शरीर की समस्त नाडि़यां
धमनीयां तथा स्नायुओं के सुचालनार्थ कुछ विषेश स्थान हैं इन्ही स्थानों को षट्चक्र कहा गया है।
इन चक्रों को मुलाधार
स्वधानिष्ठान, मणीपुर, अनहद, विशुद्ध, आज्ञा तथा सहस्त्रार चक्र के नाम से जाना जाता है। इन सभी चक्रों में अपार शक्तियां छुपी हैं जो कुण्डलिनी के जागृत होने के बाद चैतन्य होकर अलौकिक चमत्कारिक रहस्यों को प्रकट करते हुए मनुष्य को अलौकिक शक्तियों का स्वामी बना देती है। यदि किसी प्रकार कुण्डलिनी को जागृत कर लिया जाए तो मनुष्य अनंत शक्तियों का स्वामी बन जाता है।
कुण्डलिनी जागरण होते ही कुण्डलिनी उध्र्वगामी होकर एक-एक कर सभी चक्रों का भेदन करते हुए जब सहस्त्रार चक्र तक पहुंच जाती है तो मनुष्य त्रिकाल दर्शी हो जाता है अर्थात वह भुत, भविष्य तथा वर्तेमान को स्पस्ट रूप से देख सकता है तथा किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसके मन के बातों को जानने में सक्षम हो जाता है।
कुण्डलिनी जागरण के पश्चात् मनुष्य का मन निर्मल तथा शरीर निरोग हो जाता है तथा मन की कृतियां शुद्व पवित्र और सात्वीक हो जाती है।
शक्तिपात से कुण्डलिनी जागरण
कुण्डलिनी जागरण करने की अनेकों पद्धतियां शास्त्रों तथा पुराणों में वर्णित है जैसे- हठयोग, ध्यानयोग, मंत्र साधना, प्राणायाम इत्यादि परंतु इन
विधीयों से कुण्डलिनी जागरण कर पाना अत्यंक कठिन एवं श्रमसाध्य है, जिसमें अत्यधिक परिश्रम और सतत प्रयास की आवश्यकता पड़ती है परंतु शक्तिपात एक ऐसा
माध्यम है जिसके माध्यम से गुरू अपने शिष्य की कुण्डलिनी शक्ति को मात्र एक झटके में ही जागृत कर देते हैं तथा षटचक्रों का भेदन करते हुए कुण्डलिनी को सहस्त्रार तक पहुंचाकर अपने शिष्यों को पूर्णता प्रदान कर सकते है
कुण्डलिनी क्या है
मनुष्य के अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्ति को कुण्डलिनी कहा गया है। कुण्डलिनी वह दिव्य शक्ति है जिससे जगत मे जीव की श्रृष्टि होती है। कुण्डलिनी सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर मेरूदण्ड के सबसे निचले भाग में मुलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई है। मुलाधार में सुषुप्त पड़ी हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना में प्रवेश करती है तब यह शक्ति अपने स्पर्श से स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, तथा आज्ञा चक्र को जाग्रत करते हुए मस्तिष्क में स्थीत सहस्त्रार चक्र मंे पहंुच कर पुर्णंता प्रदान करती है इसी क्रिया को पुर्ण कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है।
जब कुण्डलिनी जाग्रत होती है मुलाधार चक्र में स्पंदन होने लगती है उस समय ऐसा प्रतित होता है जैसे विद्युत की तरंगे रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ घुमते हुए उपर की ओर बढ़ रहा है। साधकांे के लिए यह एक अनोखा अनुभव होता है।
जब मुलाधार से कुण्डलिनी जाग्रत होती है तब साधक को अनेको प्रकार के अलौकिक अनुभव स्वतः होने लगते हैं। जैसे अनेकों प्रकार के दृष्य दिखाई देना अजीबोगरीब आवाजें सुनाई देना, शरीर मे विद्युत के झटके आना, एक ही स्थान पर फुदकना, इत्यादि अनेकों प्रकार की हरकतें शरीर मंे होने लगती है। कई बार साधक को गुरू अथवा इष्ट के दर्शन भी होते हैं।
कुण्डलिनी शक्ति को जगाने के लिए प्रचिनतम् ग्रंथों मे अनेकों प्रकार की पद्धतियों का उल्लेख मिलता है। जिसमें हटयोग ध्यानयोग, राजयोग, मत्रंयोग तथा शक्तिपात आदि के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करने के अनेकांे प्रयोग मिलते हैं। परंतु मात्र भस्रीका प्राणायाम के द्वारा भी साधक कुछ महिनों के अभ्यास के बाद कुण्डलिनी जागरण की क्रिया में पुर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है।
जब मनुष्य की कुण्डलीनी जाग्रत होती है तब वह उपर की ओर उठने लगती है तथा सभी चक्रों का भेदन करते हुए सहस्त्रार चक्र तक पंहुचने के लिए बेताब होने लगती है। तब मनुष्य का मन संसारिक काम वासना से विरक्त होने लगता है और परम आनंद की अनुभुति होने लगती है। और मनुष्य के अंदर छुपे हुए रहस्य उजागर होने लगते हैं।
मनुष्यों के भीतर छुपे हुए असिम और अलौकिक शक्तियों को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। आज कल पश्चिमी वैज्ञानिकों के द्वारा शरीर में छुपे हुए रहस्यों को जानने के लिए अनेकों शोध किये जा रहे हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तरह पृथ्वी के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों मे अपार आश्चर्य जनक शक्तियों का भंडार है ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मुलाधार तथा सहस्त्रार चक्रों मे आश्चर्यजनक शक्तियों का भंडार है। आगामी अंकों में कुण्डलिनी जागरण करने की विधियो को विस्तार पुर्वक लिखने का प्रयास रहेगा जिससे कोइ भी साधक अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जगा कर आत्म ज्ञान प्राप्त कर सके।
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