Sunday, 10 April 2016

ग्रहों के रोग | रोग में विचारणीय ग्रह

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ग्रहों के रोग | रोग में विचारणीय ग्रह

ज्योतिष और रोग जो भी ग्रह सूर्य के प्रभाव में आकर निस्तेज होगा,शरीर में उस ग्रह से सम्बंधित तत्वों में न्यूनता रहेगी.
मनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है. यदि यह मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो तो ही शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों का जन्म होता है. शरीर के समस्त अव्यवों,क्रियाकलापों का संचालन करने वाले सूर्यादि यही नवग्रह हैं तो जब भी शरीर में किसी ग्रह प्रदत तत्व की कमी या अधिकता होतो व्यक्ति को किसी रोग-व्याधि का सामना करना पडता है. यूँ तो स्वस्थता,अस्वस्थता एक स्वाभाविक विषय है. परन्तु यदि किसी प्रकार का कोई भयानक रोग उत्पन हो जाए तो वह उस रोगग्रस्त प्राणी के लिए ही नहींबल्कि समस्त कुटुम्बीजनों के लिए दु:खदायी हो जाता है.


ज्योतिष सिद्धान्तानुसार प्रत्येक ग्रह प्राणी की संरचना के लिए निम्नलिखित तत्व प्रदान करता है:

सूर्य:- आत्मा,प्रकाश,शक्ति,उत्साह,तीक्ष्णता,ह्रदय,जीवनीशक्ति,मस्तिष्क,पित्त एवं पीठ

चन्द्र:- जल,नाडियाँ,प्रभाव-विचार,चित्त,गति,स्तन,रूप,छाती,तिल्ली

मंगल:- रक्त,उत्तेजना,बाजू,क्रूरता,साहस,कान

बुध:- वाणी,स्मरण-शक्ति,घ्राण-शक्ति,गर्दन,निर्णायक-मति,भौहें

गुरू:- ज्ञान,गुण,श्रुति,श्रवण-शक्ति,सदगति,जिगर,दया,जाँघ,चर्बी तथा गुर्दे

शुक्र:- वीर्य,सुगन्ध,रति,त्वचा,गुप्ताँग,गाल

शनि:- वायु,पिंडली,टांगें,केश,दाँत

राहू:- परिश्रम,विरूद्धता,आन्दोलन/विद्रोही भावनाएं,शारीरिक मलिनता,गन्दा वातावरण

केतु:- गुप्त विद्या-ज्ञान,मूर्छा,भ्रम,भयानक रोग,सहनशक्ति,आलस्य

यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते. यह स्थिति तब भी उत्पन हो सकती है,जब अपनी निश्चित मात्रा के अनुसार कोई ग्रह प्राणी पर प्रभाव न डाल पाए.

उदाहरण के लिए—-सूर्य के साथ (विशेष अंशो में) कोई ग्रह स्थित हो तो वो ग्रह अपना प्रभाव नियमानुसार नहीं दे पाएगा. अब ग्रह जिस शक्ति का स्वामी है,वह शक्ति जब निश्चित मात्रा में जब प्राणी को नहीं मिल पाती तो ऎसे में विभिन्न जटिल स्थिति पैदा होना तय है. शुक्र सौन्दर्यानुभूति प्रदायक ग्रह है. यदि शुक्र सूर्य के प्रकाश में अस्त हो जाए तो वह व्यक्ति की सौन्दर्यशीलता में कमी करेगा ही. ऎसे ही,यदि मंगल सूर्य के प्रभाव क्षेत्र में हो तो व्यक्ति को रक्ताल्पता जैसी शारीरिक व्याधि का सामना करना पड जाता है. कहने का तात्पर्य ये है कि जो भी ग्रह सूर्य के प्रभाव में आकर निस्तेज होगा,शरीर में उस ग्रह से सम्बंधित तत्वों में न्यूनता रहेगी.

कौन सा ग्रह किस रोग का कारक-

सूर्य :- पित्तवर्णजलनउदरसम्बन्धी रोगरोग प्रतिरोधक क्षमता की कमीन्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोगनेत्र रोगह्रदय रोगअस्थियों से सम्बन्धी रोगकुष्ठ रोगसिर के रोगज्वरमूर्च्छारक्तस्त्रावमिर्गी इत्यादि.

चन्द्रमा :- ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोगबायें नेत्र में विकारअनिद्राअस्थमाडायरियारक्ताल्पतारक्तविकारजल की अधिकता या कमी से संबंधित रोगउल्टी किडनी संबंधित रोगमधुमेहड्रॉप्सीअपेन्डिक्सकफ रोग,मूत्रविकारमुख 
सम्बन्धी रोगनासिका संबंधी रोगपीलियामानसिक रोग इत्यादि.

मंगल :- गर्मी के रोगविषजनित रोगव्रणकुष्ठखुजलीरक्त सम्बन्धी रोगगर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोगरक्तचाप,मूत्र सम्बन्धी रोगट्यूमरकैंसरपाइल्सअल्सरदस्तदुर्घटना में रक्तस्त्रावकटनाफोड़े-फुन्सीज्वरअग्निदाहचोट इत्यादि.

बुध :- छाती से सम्बन्धित रोगनसों से सम्बन्धित रोगनाक से सम्बन्धित रोगज्वरविषमयखुजलीअस्थिभंगटायफाइड,पागलपनलकवामिर्गीअल्सरअजीर्णमुख के रोगचर्मरोगहिस्टीरियाचक्कर आनानिमोनियाविषम ज्वरपीलिया,वाणी दोषकण्ठ रोगस्नायु रोगइत्यादि.

गुरु :- लीवरकिडनीतिल्ली आदि से सम्बन्धित रोगकर्ण सम्बन्धी रोगमधुमेहपीलियायाददाश्त में कमीजीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोगमज्जा दोषयकृत पीलियास्थूलतादंत रोगमस्तिष्क विकार इत्यादि.

शुक्र :- दृष्टि सम्बन्धित रोगजननेन्द्रिय सम्बन्धित रोगमूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोगमिर्गीअपचगले के रोगनपुंसकता,अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित रोगमादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोगपीलिया रोग इत्यादि.

शनि :- शारीरिक कमजोरीदर्दपेट दर्दघुटनों या पैरों में होने वाला दर्ददांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोगअस्थिभ्रंश,मांसपेशियों से सम्बन्धित रोगलकवाबहरापनखांसीदमाअपचस्नायुविकार इत्यादि.

राहु :- मस्तिष्क सम्बन्धी विकारयकृत सम्बन्धी विकारनिर्बलताचेचकपेट में कीड़ेऊंचाई से गिरनापागलपनतेज दर्द,विषजनित परेशानियांकिसी प्रकार का रियेक्शनकुष्ठ रोगकैंसर,   पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्टइत्यादि.

केतु :- वातजनित बीमारियांरक्तदोषचर्म रोगश्रमशक्ति की कमीसुस्तीअर्कमण्यताशरीर में चोटघावएलर्जी,आकस्मिक रोग या परेशानीकुत्ते का काटना इत्यादि.




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